Introduction : –
Heat Treatment(उष्मा उपचार) –
कुछ विशेष वांछित गुणों को प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित विधियाँ अपनाई जाती है –
हार्डनिंग(hardening) – यह हीट ट्रीटमेंट की वह विधि हे जिसे धातु को कठोर बनाने के लिए किया जाता है जिससे वह कम घिसे और दूसरी वस्तुओं को काटने योग्य हो सके , इस विधि में स्टील को अपर क्रिटीकल तापमान से लगभग 30 से 50 से तक अधिक तापमान पर गर्म किया जाता है , यह तापमान कार्य की मोटाई के अनुसार प्र्याप्त समय तक रखा जाता है जिससे अवयव के अन्दर तक ताप पूरी तरह प्रवेश हो सके और फिर इसे किसी उपयुक्त द्रव में डुबाकर शीघ्रता से ठण्डा करते है । कार्य को ठण्डा करने के लिए पानी , ब्राइन: तेल और तेज हवा का प्रयोग किया जाता है । तकी स्टील के पाट्र्स की घिसावट को रोकने के लिए । स्टील को अन्य धातुओ से काटने योग्य बनाने के लिए । स्टील में स्ट्रेंग्थ बढ़ाने के लिए ।
टेम्परिंग(tempering) – जब स्टील के पाटर््स या कटिंग टूल्स को हार्ड किया जाता है तो उनमें भंगुरता अधिक हो जाता है जिससे उनके टूटने का भय रहता है इस कमी को दूर करने के लिए टेम्परिंग की जाती है इसमंे कुछ भंगूरता कम करके टफनेस को बढ़ाया जाता है। हार्ड किए हुए पाटर््स से आवश्यकतानुसार हार्डनैस और भंगुरता कम करने के लिए । कार्य को बार बार गर्म करने से उत्पन्न आन्तरिक तनाव को दूर करने के लिए । इस्पात की तन्यता को बढ़ाने के लिए । इस्पात के आयतन में परिर्वतन लाने के लिए ।
एनीलिंग(Annealing) – कठोर इस्पात के पाटर््स को मशीनिंग करने योग्य बनने के लिए उन्हे मुलायम बनाने की विधि को एनीलिंग कहते है । इसमें स्टील के पाटर््स को उनके एनीलिंग तापमान पर गर्म किया जाता है और यह तापमान कार्य की मोटाई के अनुसार कुछ समय तक रखा जाता है कार्य को धीमी गति से ठण्डा किया जाता है। धातु को मुलायम बनाना जिससे उस पर मशीन से काम करने में आसानी हो । धातु की तन्यता बढ़ाना। धातु के ग्रेन साइज को रिफाइन करना । विद्युत एवं चुम्बकीय को रिफाइन करना ।
नोर्मलाइजिंग(Normalising) – यह Heat Treatmentकी सबसे साधारण प्रोसेस कही जाती है स्टील पर ठंडी या गर्म हालत में कार्य करने के बाद उसे सामान्य दशा में लाने के लिए जो क्रिया की जाती है । इस्पात के कणों का साइज कम करने के लिए । इस्पात के यान्त्रिक गुणों में सुधार लोने के लिए । चीमड़पन बढ़ाने के लिए । चरम सामथ्र्य , पराभव बिन्दु तथा संघट सामथ्र्य के ऊँचे मानों की प्राप्ति के लिए।
केस हार्डनिंग(case Hardening) – लो कार्बन स्टील अर्थात् माइल्ड स्टील को हार्ड नहीं किया जा सकता है , क्योंकि उसमें कार्बन की मात्रा कम होती है ,परन्तु माइल्ड स्टील के पाटर््स की सरफेस को घिसने के बचाने के लिए एक प्रकार की क्रिया की जाती है , जिसे के हार्डनिंग कहते है , इस विधि से केवल पाटर््स की बाहरी सरफेस को ही हार्ड किया जाता है और अन्दर का भाग मुलायम और टफ रखा जाता है , जिससे पाटर््स झटके और कम्पन को आसानी से साहन कर सकते है ।
नाइट्राइडिंग(Nitriding) – यह विधि एलाॅय स्टील के पाटर््स की सतहों को हार्ड करने के लिए किया जाती है इस विधि में पाटर््स को अमोनिया गैस के साथ 500 से 550 तक तापमान देकर गर्म किया जाता है और पाटर््स को धीरे धीरे ठण्डा होने दिया जाता हे इससे अमोनिया की नाइट्रोजन पाटर््स की सतहों को हार्ड कर देती है । सामान्यतः पार्ट्स को अमोनिया गैस के साथ 50 घण्टे तक गर्म करके उनकी सतह को 0.4 मिमी. तक गहराई में हार्ड किया जा सकता है ।
सायनाइडिंग(cyaniding) – यदि किसी लो कार्बन स्टील के पाटर््स की सरफेस को बहुत अधिक हार्ड बनाना हो और उसमें अधिक झटके सहन करने की गुण की आवश्यकता न हो , तो सायनाइडिंग विधि से केस हार्डनिंग की जाती हे । इस विधि में पाटर््स को सायनइड बाथ में गर्म किया जाता है जिसमें 13 भाग सोडियम सायनइड , 13 भाग सोडियम कार्बोनेट और 13 भाग सोडियम क्लोराइड होता है , इस मिश्रण को लगभग 800 से 850 तक तापमान दिया जाता है, पाटर््स को गर्म करने के बाद पानी , ब्राइन या तेल में ठण्डा किया जाता है ।
फ्लेम हार्डिंग(Flame Hardening) – इस विधि में पाटर््स को आॅक्सी – एसीटिलीन टार्च के द्वारा लौ देकर गर्म किया जाता है और साथ साथ पानी का फुआरा देकर पाटर््स को ठण्डा करते है यह क्रिया प्रायः हाई कार्बन या एलाॅय स्टील के पाटर््स को हार्ड करने के लिए की जाती है ।
इंडक्शन हार्डनिंग(Induction Hardening) – इस विधि में इंडक्शन हार्डनिंग का प्रयोग किया जाता है , इसमें लगभग 2000 साइकिल का करंट एक काॅपर इंडक्शन ब्लाॅक से प्रवाहित किया जाता है इस ब्लाॅक को पाटर््स की हार्ड करने वाली सतह के पास रखा जाता है और ध्यान रखा जाता है कि पाटर््स की सतह इस ब्लाॅक से स्पर्श न करे एलाॅय स्टील को हार्डनिंग करने के लिए तापमान लगभग 790 से 800 तक रखा जाता है और 0.5 कार्बन वाली स्टील के लिए तापमान लगभग 750 से 760 तक रखा जाता है इसके बाद पाटर््स के गर्म किए हुए स्थान को पानी के फुआरों के द्वारा तुरन्त ठण्डा कर दिया जाता है ।
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